हमने.क्या क्या नहीं देखा

❤️❤️❤️
*हमने.क्या क्या नहीं देखा*

हमने बहते दरिया को
दो किनारों में बटते हुए देखा है 
हमने बीच मझधार में अपनों को ही 
अपनों की कश्ती डूबोकर हसते हुए देखा है

यूँ फलक पर चाँद को 
नए अक्स में उभरते हुए देखा है 
हमने अपने मकां की चार दिवारी में 
रहते हुए अपनों को रंग बदलते हुए देखा है.

हमने पानी की बूंदों को 
बूंद से समंदर में बदलते देखा है 
हमने इस दुनिया मे आम से बंदे को 
महफिल में मस्त कलन्दर बनते हुए देखा है.

हमने बस्ते हुए शहर को 
पलभर में यूँ उजड़ते हुए देखा है 
हमने पक्के धागों से बने रिश्तों को 
चंद लम्हों में उलझकर उधड़ते हुए देखा है.

हमने जलती हुई लौ को 
तेज़ हवाओं से लड़ते हुए देखा है 
हमने धन दौलत जायदाद की खातिर 
बच्चों को माँ बाबा से झगड़ते हुए देखा है.

हमने आँख में ख़्वाबों को 
वक़्त के साथ चलते हुए देखा है 
हमने बड़े बड़े साहूकारों को लुटे हुए 
जुआरियों की तरह हाथ मलते हुए देखा है.

हमने इंसान की मौत पे यूँ 
लोगो को भीड़ मे आते हुए देखा है 
हमने जिस्म से रूह अलग हो जाने पर 
अपनों को ही उसे आग लगाते हुए देखा है

❤️❤️❤️एक अजनबी

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