क्यूँ लग रहा है जैसे कोई आस पास हैवो कौन है जो है भी नही पर उदास है

बे नाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नही जाता

सब कुछ तो है क्या ढूंढती रहती है निगाहें
क्या बात हैं मैं वक़्त पे घर क्यों नहीं जाता

वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहां में
जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नही जाता

मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते है जिधर सब मैं उधर क्यों नही जाता

वो ख़्वाब जो बरसो से न चेहरे न बदन है
वो ख़्वाब हवाओ में बिखर क्यों नहीं जाता

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क्यूँ लग रहा है जैसे कोई आस पास है
वो कौन है जो है भी नही पर उदास है
 

मुमकिन है लिखने वाले को भी खबर
ना हो किस्से में जो नही है वही बात
खास है____________💞💞💞💞


माने ना माने कोई हक़ीकत तो है यही
चर्खा है जिसके पास उसी का कपास है


इतना भी बन संवर के ना निकला करे
लग्ता है हर लिबास में वो बे हिसाब है


छोटा बड़ा है पानी खुद अपने हिसाब से
उतनी ही हर नदी है यहा जितनी प्यास है

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खुशियां कम और अरमान बहुत है।।

जिसे भी देखो परेशान बहुत है।।

करीब से देखी तो निकला रेत का घर।।

मगर दूर से इसकी शान बहुत है।।

कहते हैं सच का कोई मुकाबला नहीं।।

मगर आज झूठ की पहचान बहुत है।।

मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी।।

यूं तो कहने को इंसान बहुत है।।

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