न जाने किस के लिए इतना बदल रहा हूँ :- shayari( शायरी)

 न जाने किस के लिए इतना बदल रहा हूँ

ज़िस्म फूलों का हैं लेक़िन काटो पे चल रहा हूँ


अग़र वो तेरा इशारा तो सैराब हो ये प्यासा

आँखों में लिए आँसू कब से मचल रहा हूँ 


बहोत शिद्दत की प्यास लगी थी मुझे देखा सब ने

तपती हुई ज़मी से मैं चश्मा निकाल रहा हूँ


ख़ुद को बचाए या उसकी हिफाज़त करे हम 

वहाँ बस्ती जल रही हैं यहाँ मैं दिल जला रहा हूँ


चहरा उसका आँखों में हैं वो करार दिल का हैं

पानी में चाँद को देख कर ख़ुद को बहला रहा हूँ


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