अज़ीब सा लड़का
एक अज़नबी ने मुझसे कुछ कहा था
इरफ़ान तेरा मकाँ बड़ा अज़ीब मकाँ हैं
जिस पर ये खड़ा हैं वो पेड़ अब सड़ा हैं
तेरे दिल की खिड़किया ज़माने से बंद हैं
दरवाजा इसका जंजीरों से बधा हुआ हैं
कोई आए भी तो कैसे आए अंदर बता
तूने तो अपना पता भी गलत लिखा हैं
मेरे मकाँ के दर ओ बाम सालों से इन्तेज़ार में हैं
कोई महताब सिफ़त शहजादी आकर मुन्नवर कर दे
लोग कहते हैं रात में अक्सर मकाँ में
अज़ीब आवाज़ें सुनाई देती हैं
क़भी पायल बजती हैं क़भी चूड़ियां
यहाँ पर खनकती हैं
ग़ैबी आवाज़ ने सवाल मुझ से किया था
तुमने तो उसे चाहा था
उसी आवाज़ ने और सवाल किया था
तुमने वफ़ा का वादा भी किया था
उसको ज़िंदगी की जरुरत समझ लिया
उसको मैंने खुदा की इनायत समझ लिया
उसी आवाज़ ने मुझसे कहा था
इरफ़ान दरिया तेरा सुख गया
यार तेरा छूट गया
कई सालों से तेरे घर में कोई शख्स नहीं आया
चाँदनी रात में अशआर लिखता हैं
तू किसे अपनी जान अब कहता हैं
चाँदनी रात में तू उस परी के ख़्वाब देखता हैं
तू कैसा अज़ीब सा लड़का हैं
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