उसको ज़िंदगी की जरुरत समझ लिया उसको मैंने खुदा की इनायत समझ लिया

उसको ज़िंदगी की जरुरत समझ लिया 
उसको मैंने खुदा की इनायत समझ लिया

इश्क़ में कैसे कैसे धोखे खाए हैं मैंने 
क़यामत को हमनें आमत समझ लिया 

किरदार क्या उसका ये न सोचा क़भी मैंने
उसे सज्दा किया औऱ इबादत समझ लिया

खूबसूरत चहेरे के पीछे शैतान छुपा था 
उसकी मिट्टी बातों को शराफ़त समझ लिया

न अब मैं हूं न बाक़ी हैं वजूद मेरा कोई 
ख़ुद का सर कलम कर शहादत समझ लिया

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शाम होती रही आफ़ताब ढलता रहा
मेरा कारवाँ मुझसे दूर जाता रहा

मुझ पर क्या गुज़री कौन समझ सकेगा
अहल-ए-मकान मेरा सोता रहा

मेरे ख्वाबों की कोई बुनियाद नहीं हैं
बर्फ़ दरिया में वहाँ मिलता रहा

इश्क़ के आख़री मुकाम पर आ गया हूँ
मसला जो था उसका बढ़ता रहा

हादसों की कहानी तवील हैं मेरे बहोत
साक़ी पिलाता रहा मैं पिता रहा

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क़भी पाग़ल बनाया क़भी दीवाना बनाया
इन अँधेरो ने मुझे बहोत हैं सताया

ख़ुदा ही जाने आने वाली रुत के बारे में
हमनें अपनी महफ़िल को अकेले सजाया

ये देखना हैं दम कितना बाक़ी हैं हम में
क़भी सुरों को उठाया क़भी ताल को बिठाया

हमारे पास रौशनी नहीं सन्नाटा हैं सन्नाटा
उजड़ी हुई दुनियां को हमनें नहीं बसाया

अभी यहाँ खतरा बहोत हैं दुश्मन मौजूद हैं
बंद आँखों से हमनें उन्हें हैं डराया 



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