उसको ज़िंदगी की जरुरत समझ लिया
उसको मैंने खुदा की इनायत समझ लिया
इश्क़ में कैसे कैसे धोखे खाए हैं मैंने
क़यामत को हमनें आमत समझ लिया
किरदार क्या उसका ये न सोचा क़भी मैंने
उसे सज्दा किया औऱ इबादत समझ लिया
खूबसूरत चहेरे के पीछे शैतान छुपा था
उसकी मिट्टी बातों को शराफ़त समझ लिया
न अब मैं हूं न बाक़ी हैं वजूद मेरा कोई
ख़ुद का सर कलम कर शहादत समझ लिया
__________________________________________
शाम होती रही आफ़ताब ढलता रहा
मेरा कारवाँ मुझसे दूर जाता रहा
मुझ पर क्या गुज़री कौन समझ सकेगा
अहल-ए-मकान मेरा सोता रहा
मेरे ख्वाबों की कोई बुनियाद नहीं हैं
बर्फ़ दरिया में वहाँ मिलता रहा
इश्क़ के आख़री मुकाम पर आ गया हूँ
मसला जो था उसका बढ़ता रहा
हादसों की कहानी तवील हैं मेरे बहोत
साक़ी पिलाता रहा मैं पिता रहा
__________________________________________
क़भी पाग़ल बनाया क़भी दीवाना बनाया
इन अँधेरो ने मुझे बहोत हैं सताया
ख़ुदा ही जाने आने वाली रुत के बारे में
हमनें अपनी महफ़िल को अकेले सजाया
ये देखना हैं दम कितना बाक़ी हैं हम में
क़भी सुरों को उठाया क़भी ताल को बिठाया
हमारे पास रौशनी नहीं सन्नाटा हैं सन्नाटा
उजड़ी हुई दुनियां को हमनें नहीं बसाया
अभी यहाँ खतरा बहोत हैं दुश्मन मौजूद हैं
बंद आँखों से हमनें उन्हें हैं डराया
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें