हमारी जुदाई का ये अंज़ाम ख़ूबसूरत है,कुछ भी कहो मगर ये शाम ख़ूबसूरत है


हमारी जुदाई का ये अंज़ाम ख़ूबसूरत है,
कुछ भी कहो मगर ये शाम ख़ूबसूरत है !

ज़िन्दगी ना जाने कहाँ को ले जाए,
मगर रास्तों के ये गाम ख़ूबसूरत है !

तुम जो हंसती हो जमाने भर से अलग,
कहीं कहीं पे ये ख़्याल ख़ूबसूरत है !

जरूरी नहीं जैसे हर बात की वज़ाहत,
ठीक वैसे ही जैसे तेरा नाम ख़ूबसूरत है !

फ़िर इसके बाद हो ही जाएंगे जमाने भर से अलग,
कुछ दिखता ही नहीं पर ये इबहाम ख़ूबसूरत है !

क्या ही करेंगे अपनी सफ़ाई दे कर 'अहमद'
मेरे जानाँ का ये इल्ज़ाम ख़ूबसूरत है 

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