अज़नबी लड़की
इक अज़नबी लड़की थी
वो ख़ूब हस्ती हँसाती थी
हमे देख मुँह फेर लेती थी
फ़िर पलट के देखती थी
न जाने वो कैसी थी
वो तो मेरे अपनो जैसी थी
उसकी नज़र ने मुझ पर
असर कर डाला
न जाने मैंने क्या क्या न
सोच डाला
मेरी शायरियां वो पढ़ी
जाती थी
वो शोख़ हसीन लडक़ी
हल्के से मुस्कुरा जाती थी
मुझे अपना ध्यान कहा था
उस अज़नबी लड़की ने तो
मुझे दीवाना बनाया था
मैं उसके घर का तवाफ़
करता था
उसका ही रास्ता तकता था
मेरे ख्वाबों ख़यालो में बस
वही एक लड़की थी
मुझे वो आवारा पाग़ल
कहती थी लेक़िन नज़र
मुझ पर ही रखती थी
मुझे देख कर वो दिल ही
दिल में ख़ुश होती थी
यार वो अज़नबी लड़की थी
वो इक अज़नबी लड़की थी
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