हवा तो महज़ बहाना था उसे तो चराग़ बुझाना था


हवा तो महज़ बहाना था 
उसे तो चराग़ बुझाना था

इश्क़ तो उसका झूठा था
वफ़ा तो महज़ दिखावा था

तू क्यू आया था मेरे शहर
जब तुझे रवाना होना था

क्यू ख़्वाब दिखाए थे मुझे
जब उन्हें तोड़ जाना था 

इस उम्मीद पर भटक रहा हूं
मेरा तेरे दिल में ठिकाना था

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सिर्फ़ करवट नहीं हदों के बीच 
इक ज़माना है करवटों के बीच 

आँख पलकों के बीच ऐसी है 
जैसे दरिया हो साहिलों के बीच 

ज़िंदगी रेल सी गुज़रती है 
साँस की दोनों पटरियों के बीच 

ये कोई मसअला न बन जाए 
एक आँसू है क़हक़हों के बीच

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भेजा हुआ है और न बुलाया हुआ है दर्द 
मेहमान बन के दिल में समाया हुआ है दर्द 

आँखों से इक झड़ी है मुसलसल लगी हुई 
लगता है आशिक़ी का सताया हुआ है दर्द

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उसका इश्क़ मेरा ग़ुरूर था 
उसका ही मुझ पे सुरूर था

दूर उसने किया हैं अँधेरे को
उसमें अलग सा एक नूर था

हम निगाहों से ही क़त्ल हुए
इसमें उसका क़सूर नहीं था

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