बचपन भी कितना अजीब होता है...
वो की गई शरारतें न जाने कब यादों का रूप ले लेती है पता ही नही चलता...
न जाने कितने सारे खेल हम खेला करते थे...
प्यार के बारे में उन दिनों जानते नही थे...
स्कूल में उन दिनों Present Indefinite(ता है,ती है ) पढ़ाया जा चुका था और हम आई लव यू को ट्रांसलेट करने लगे थे...
इससे ज्यादा प्यार को नही जानते थे
हाँ कुछ अच्छा लगता है प्यार के बाद ये जानते थे...
हकीकत से काफी दूर थे हम...
हो सकता है वक्त के आगोश में आकर तुम भूल गई हो पर हमें वो सब बातें याद है जो यादें बनकर रह गयी है...
न जाने कितने सारे खेल जो मैंने उससे पहले सुने भी नही थे *"नीली पीली साड़ी*, *छिपम छिपाई* और भी बहुत से...
तुम्हारे साथ ही तो खेल कर बडे हुए है...
नीली पीली साड़ी वाले खेल में अक्सर तुम मेरी आँखें बंद कर लेती थी...
जिससे आंखों से कुछ नही दिखता था हालांकि दिल में सीन से चलने लगते थे...
छिपम छिपाई वाले खेल में मुझे कोई और जगह ही नही मिलती थी जहां तुम छिपती थी वही मैं आ जाता था...और तुम पागल कहकर मुस्कुरा देती थी...
धीरे धीरे प्रेम पनप रहा था हम दोनों के बीच...
एक बार हम और तुम अकेले थे कोई और खेलने ही नही आया था उस दिन...
फिर तुम ने एक नया खेल ईजाद किया था...
तुम मेरी पीठ पर अपनी उंगली से लिखा करती थी और पूछती थी बताओ मैंने क्या लिखा और मैं उंगली के स्पर्श से बने शब्दों को पहचान कर तुम्हे बता देता था...
फिर बारी तुम्हारी थी और मैं तुम्हारी पीठ पे उंगली से कुछ लिखता था और तुम भी बता देती थी...
फिर हमने हिम्मत करके तुम्हारी पीठ पर वो *तीन शब्द* लिख दिए जो कभी हम दोनों के होंठों ने नही कह पाए...
तुम समझ तो पहली बार मे ही गयी थी लेकिन तुमने पक्का करने के लिए कहा फिर से लिखो मैंने फिर से वही लिखा तुम शरमा गयी थी और तुम्हारी धड़कने बढ़ गयी थी फिर तुमने धीरे से कहा नही पता...
जबकि तुम्हरी आंखे और चेहरा सब बयाँ कर रहा था कि तुम समझ गयी हो...
मुझे पता था तुम्हे भी प्रेम है मुझसे...और तुम उस मौके को भुना नही पाई...
और मैं भी न कह पाया फिर कभी...
काश! उस दिन मैं हार जाता तो प्रेम की विजय हो जाती...
ख्वाहिशे जो हमेशा मरने के लिए ही होती है उन्हें संजीवनी मिल जाती...
तुम्हे शायद ये नही पता है
कि वक्त पर न कहे गए हर प्रेम के रिश्ते की अकाल मृत्यु हो जाती है...
और मैं इस रिश्ते की मौत पर पश्चाताप की अग्नि में दहक रहा हूँ...
मुझे पता है ये पढ़कर तुम बेदम हो जाओगी...अश्क उमड़ पड़ेंगे आँखो से...
लेकिन जरा उन रिश्तो के बारे में सोचो जो दिल में उगे और वही दफन हो गए...
कभी होठो तक न आ पाए...
शुक्र मानो ,हमे तुम्हे ये तो पता है कि हम प्यार तो करते थे आपस मे..और मिलना तो प्रेम में वैसे भी नही हो पाता...
पर मेरी किस्मत को अभी भी छिपम छिपाई वाला खेल पसंद है...
तुम पता नही कहा छिप गयी हो... तुम्हे ढूढ़ते ढूढ़ते 7 साल हो गए है और मैं भटक रहा हूँ इस अजनबी दुनिया मे...
क्यों बता तो दो कहाँ छिपी हो
पहले तो आसानी से मिल जाती थी...
अब क्या हुआ है तुम्हे...
😢😢😭😭💔💔
मुझे मालूम है तुम ये पढ़ रही हो
शायद तुम समझ सको...
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